योग माने क्या है? जानें योग और मस्तिष्‍क के बीच का संबंध

योग माने क्या है? जानें योग और मस्तिष्‍क के बीच का संबंध

सेहतराग टीम

योग व्यायाम नहीं है। आज व्यायाम को योग का पर्याय समझा जाने लगा है। दुर्भाग्यपूर्ण तो यह है कि व्यायाम सिखाने वाले लोग अपने को योग गुरु कहलाना पसंद करते हैं। अब सवाल यह है कि क्या आप योग का आंतरिक मतलब जानते हैं। आइए जानते हैं, योग का मतलब योग गुरु सुनील सिंह से...

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योग का अर्थ-

योग का अर्थ है जुडना, संयुक्त होना। योग वह विधि है, वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से हमारा अपने स्वभाव से, अपनी चेतना से जुड़़ाव होता है एवं अंंततः अस्तित्व से योग संभव होता है। यदि हम देखेें तो हमारी चेतना की ऊर्जा बिखरी हुई प्रवाह में बहती है। प्राथमिक चरण में हमें अपनी ऊर्जा को योग की स्थिति में लाना होगा, क्योंकि बिखरी हुई ऊर्जा के कारण हम अपने मूल स्वभाव से नहीं जुड पा रहे हैं। मूल स्वभाव से जुडे बिना अस्तित्व से जुडना संभव नही हो पाता है। जीवन में हम दुखों से बचना चाहते हैं। योग की दृष्टि से देखें तो अपनी चेतना की संयुक्त ऊर्जा ही आनंद भाव में या मूल स्वभाव में होने की सूचक है। हम अपने जीवन में यादि गाैर करे तो पाएंंगे कि जब भी हम आनंदित होते हैं, उस समय हमारी ऊर्जा संयुक्त रूप से एक ही ओर बह रही होती है। ऊर्जा का यह योग प्राकृतिक रूप से कभी-कभी जीवन में आकस्मिक होता है। लेकिन यह स्थायी रूप से जीवन में घटित हो इसके लिए होश की साधना की आवश्यकता होगी। होशपूर्ण स्थिति में हमारी ऊर्जा खुद संयुक्त होने लगती है। स्वयं योग घटित होने लगता है। जितना ही हम कम होशपूर्ण होते हैं उतनी ही हमारी ऊर्जा बिखरने लगती है। कई दिशाओं में प्रवाहित होने लगती है। ऊर्जा का बिखराव बेचैनी पैदा करता है। दुख ऊर्जा का अभाव है। दुख के क्षणों आपने महसूस किया होगा कि आप अपने को कितना कमजोर महसूस करते हैं। जितने भी दुख और बेचैनी पैदा करने वाले भाव हैं चाहे वह लोभ हो, क्रोध हो, भय हो, ईर्ष्या  हो या कुछ और हो, सभी में हमारी ऊर्जा बाहर की ओर विसर्जित होने लगती है। क्योंकि ऐसे क्षणों में हमारा ध्यान बाहर की ओर स्वयं से दूर कही अन्यत्र होता है। और ऊर्जा वहीं बहती है जहां हमारा ध्यान होता है। तो ऊर्जा को संंयुक्त करने हेतु हमें ध्यान की दिशा स्वयं की ओर मोड़ना होगा, जिससे वास्तविक योग घटि‍त हो सके।

 

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